Wednesday, 5 March 2014

इस शहर के रहने वालों पर اس شہر کے رہنے والوں پر





*****

इस शहर के रहने वालों पर
ये पिछली रात जो गुज़री है
ये रात बहुत ही भारी थी
ये रात बहुत ही काली थी

कल शहर के इक चौराहे पर
कुछ शैतानों का जमघट था
इन शैतानों के चेहरे भी
बिल्कुल इंसानों जैसे थे
जब शाम के साये गहराये
और रात के आँचल लहराये
दिन भर के थके हारे पंछी
जब लौट के अपने घर आये
इक शोर उठा
मारो काटो
कुछ दर्द भरी चीखें गूंजीं
भागो भागो
सारी शब् ये कोहराम रहा
और रात के बेहिस होंटों पर
बस खून भरा इक जाम रहा
जब सुबह हुई
और सूरज ने
धरती पे नज़र अपनी डाली
कुछ आग में लिपटे घर देखे
कुछ लाशें औरतों मर्दों कि
बच्चों के कटे कुछ सर देखे

हर रास्ता खून से लतपत था
गलियों में अजब वीरानी थी
और सन्नाटों की सायं  सांय से
खौफ का आलम तारी था
ये पिछली रात जो गुज़री है
इस शहर के रहने वालों पर
हर लम्हा कितना भारी था

*****

No comments:

Post a Comment