Friday 4 July 2014

तेरी आँखें تری آنکھیں


تری آنکھیں۔۔۔



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तेरी आँखें...

तेरी इन शोख़ आँखों में
जो इक मीठी शरारत सी महकती है
ये खुश्बू मेरे अंदर धीरे धीरे से उतरती है
तुझे सोचूँ तो ये आँखें
ख़यालों में चमकती हैं
कि जैसे रात में रौशन सितारे हों
तेरी आँखें
कि जैसे ज़िन्दगी के खूबसूरत से इशारे हों
तेरी आँखें
बहुत ही खूबसूरत हैं
कि जैसे ख़ूबसूरत ज़िन्दगी के ख़्वाब होते हैं
तेरी आँखें
बहुत ही ख़ूबसूरत हैं
कि जैसे ख़ूबसूरत प्यार के अबवाब होते हैं
तेरी आँखें
कि जिनमें शाम की ठण्ढक सी होती है
तेरी आँखें
कि जिनमें सुब्ह की लज़्ज़त सी होती है
तेरी आँखों के नाम अपने ये सुब्हो-शाम लिख दूँ क्या?
तेरी आँखें
कि जिनमें ज़िन्दगी के सारे रंग
और सारी ख़ुशियाँ हैं
मैं अपनी ज़िन्दगी को बढ़ के इन के नाम लिख दूँ क्या?

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Sunday 1 June 2014

दिल शादाब चमन था دل شاداب چمن تھا





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दिल शादाब चमन था, सहरा होता जाता है
तेरी याद का ज़ख्म तो गहरा होता जाता है

कोई सच कहता है और न कोई सुनता है
सारा शह्र तो गूँगा बहरा होता जाता है

वो जो प्यार के रिश्ते थे, दम तोड़ते जाते हैं
हर दिल पर नफ़रत का पहरा होता जाता है

तेरा नाम हवा में यूँ ही लिखता जाता हूँ
और फ़ज़ा का रंग सुनहरा होता जाता है

अब हर ख़ुश्बू तेरी याद की ख़ुश्बू जैसी है
अब हर चेहरा तेरा चेहरा होता जाता है

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Friday 9 May 2014

वो हँसता है وہ ہنستا ہے


کسی کی خوبصورت ہنسی کے نام

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किसी की खूबसूरत हँसी के नाम...

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वो हँसता है

तो लगता है

उजाले की किरन

आईनों से टकराई है

और सारे रंगों की धनक

बोझल फ़ज़ाओं में

बिखरती जा रही है


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Thursday 24 April 2014

बहुत सँभाला फिर भी بہت سنبھالا پھر بھی





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बहुत सँभाला फिर भी आँसुओं में ढल के आ गए
तमाम दिल के ज़ख्म पैरहन बदल के आ गए

हमारे सर तो नेज़ों पर बलन्द भी नहीं हुए
ये कौन हैं जो अपने मुँह पे खून मल के आ गए

ख़ुशी की जुस्तुजू में मुझको खुद ही दौड़ना पड़ा
जो ग़म थे वो तो खुद ही मेरे पास चल के आ गए

बस इक चराग़ रात से नबर्द-आज़मा रहा
अँधेरे उसके सामने से हाथ मल के आ गए

मुहब्बतें सदायें देते देते सब को थक गईं
अदावतों की इक सदा पे सब निकल के आ गए

तमाम रास्ते तेरी गली से मुन्सलिक हैं क्या?
जहाँ भी हम गए तेरी गली में चल के आ गए

बग़ैर मौसमों के खूं की बारिशें बहुत हुईं
न जाने कैसे दिन ये "पूर्वांचल" के आ गए

वहाँ वो शोरे-हश्र था बपा, न चाहते हुये
सब अपनी क़ैदे-ज़ात से निकल निकल के आ गए

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Friday 28 March 2014

हमने समझा था ہم نے سمجھا تھا





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हमने समझा था कि बस इक कर्बला है ज़िन्दगी
कर्बलाओं का मुसलसल सिलसिला है ज़िन्दगी

एक तेरे ग़म ने सब ज़ख्मों पे मरहम कर दिया
सब ये कहते थे कि दर्दे-ला-दवा है ज़िन्दगी

मुश्किलों से हार जाना इस को आता ही नहीं
शब् की तारीकी से लड़ता इक दिया है ज़िन्दगी

जीने वालों के लिए है आखिरी उम्मीद मौत
मरने वालों के किये इक आसरा है ज़िन्दगी

किस क़दर मकरूह चेहरा है, नज़र आ जाएगा
हर किसी के रू-ब-रू इक आईना है ज़िन्दगी

हर ख़ुशी के बाद ग़म और फिर ख़ुशी की आहटें
आते जाते मौसमों का सिलसिला है ज़िन्दगी

दर्द के तपते हुए सेहराओं से होता हुआ
मौत तक जाता हुआ इक रास्ता है ज़िन्दगी

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Tuesday 25 March 2014

सच बोले कौन? سچ بولے کون؟





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सच बोले कौन? कोई भी अब मिल नहीं रहा
कोई दिया हवा के मुक़ाबिल नहीं रहा

इक तेरे ग़म का बोझ उठाया था दिल ने बस
फिर कोई ग़म ज़माने का मुश्किल नहीं रहा

तुझसे भी दिलफरेब थे दुनिया के ग़म मगर
मैं तेरी याद से कभी ग़ाफ़िल नहीं रहा

तेरे बग़ैर जैसे ये गुज़री है ज़िन्दगी
जीना तो इस क़दर कभी मुश्किल नहीं रहा

वो कौन सी नमाज़ जो तेरे लिए न थी
तू मेरी किन दुआओं में शामिल नहीं रहा

सब तेरी इक निगाह के मक़तूल हो गए
अब सारे शहर में कोई क़ातिल नहीं रहा

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Saturday 22 March 2014

ताबिन्दा रौशनी की تابندہ روشنی کی





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ताबिन्दा रौशनी की ख़बर ले के आएगी
हर शब् नई उमीदे-सहर ले के आएगी

भटका रही है आज अगर दर-ब-दर तो क्या
आवारगी कभी मुझे घर ले के आएगी

तन्हा तुम्हें भी चलना है इन रास्तों पे कल
कल ज़िन्दगी तुम्हें भी इधर ले के आएगी

कर के तवाफ़ शहर का लौटेगी जब हवा
चेहरे पे अपने वहशतो-डर ले के आएगी

तितली चमन से लाएगी सौगाते-रंग, या
बिखरे हुए कुछ अपने ही पर ले के आएगी

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