تری آنکھیں۔۔۔
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तेरी आँखें...
तेरी इन शोख़ आँखों में
जो इक मीठी शरारत सी महकती है
ये खुश्बू मेरे अंदर धीरे धीरे से उतरती है
तुझे सोचूँ तो ये आँखें
ख़यालों में चमकती हैं
कि जैसे रात में रौशन सितारे हों
तेरी आँखें
कि जैसे ज़िन्दगी के खूबसूरत से इशारे हों
तेरी आँखें
बहुत ही खूबसूरत हैं
कि जैसे ख़ूबसूरत ज़िन्दगी के ख़्वाब होते हैं
तेरी आँखें
बहुत ही ख़ूबसूरत हैं
कि जैसे ख़ूबसूरत प्यार के अबवाब होते हैं
तेरी आँखें
कि जिनमें शाम की ठण्ढक सी होती है
तेरी आँखें
कि जिनमें सुब्ह की लज़्ज़त सी होती है
तेरी आँखों के नाम अपने ये सुब्हो-शाम लिख दूँ क्या?
तेरी आँखें
कि जिनमें ज़िन्दगी के सारे रंग
और सारी ख़ुशियाँ हैं
मैं अपनी ज़िन्दगी को बढ़ के इन के नाम लिख दूँ क्या?
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