Saturday, 22 March 2014

हर मौसम को ہر موسم کو





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हर मौसम को सावन सा मौसम कर देता है
जब भी वो मिलता है आँखें नम कर देता है

तेरे मिलने से होते हैं ज़ख्म हरे लेकिन
तेरा मिलना दिल की उलझन कम कर देता है

रोज़ नए कुछ ज़ख्म मुझे देती है ये दुनिया
तेरा ग़म इन ज़ख्मों पर मरहम कर देता है

मैंने भी सोचा था तिनकों से घर एक बनाऊँ
वक़्त मगर सब कुछ दरहम-बरहम कर देता है

डूब तो जाता है सूरज ख़ामोशी से लेकिन
कितनी ही शम्मों की आँखें नम कर देता है

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