Tahreeren
मुझमें ज़िन्दा है कहीं आज भी दुनिया मेरी
Friday, 21 March 2014
ग़म को भी तराश कर غم کو بھی تراش کر
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ग़म को भी तराश कर ख़ुशी बना दिया
हमने ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बना दिया
ज़िन्दगी मिली थी चन्द लम्हों की मगर
हमने लम्हे लम्हे को सदी बना दिया
अश्क
,
भूक
,
ग़म
,
फसाद
,
खूं
,
जले मकाँ
सब को जब समेटा शायरी बना दिया
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