Tuesday, 11 March 2014

शाम में रंगे- शफ़क़ شام میں رنگ شفق





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शाम में रंगे- शफ़क़ बन कर बिखरता कौन है
मेरे बाद अब देखें सूरज सा उभरता कौन है

मेरी आँखों के सभी ख़्वाबों के मर जाने के बाद
ज़िन्दगी में मेरी, देखें रंग भरता कौन है

मैं तो इक टूटा दिया हूँ और तुम सूरज कोई
अब हवा के सामने देखें ठहरता कौन है

मंज़िलें तो हमने पीछे छोड़ दीं, पीछे बहुत
अब इधर से हो के ये देखें गुज़रता कौन है

हुक्म से तेरे हरेक बस्ती जली, हर सर कटा

ऐ अमीरे-शहर ! फिर भी तुझसे डरता कौन है

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