غزل
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धमकियों से डर न जाए आइना.
सच से फिर मुकर न जाए आइना.
पत्थरों का इक हुजूम है उधर,
कह दो कि उधर न जाए आइना.
डर ये है कि झूट सच की जंग
में,
टूट कर बिखर न जाए आइना.
सैकड़ों क़यामतें हैं राह में,
कह दो आज घर न जाए आइना.
पै बा पै हक़ीक़तों की ज़र्ब
को,
सहते सहते मर न जाए आइना.
जब कहेगा सच कहेगा, इसलिए
नज़रों से उतर न जाए आइना.
चाँद शर्मसार होगा बे सबब,
आज बाम पर न जाए आइना.
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