Sunday, 23 February 2014

धमकियों से डर न जाए دھمکیوں سے ڈر نہ جاۓ




غزل



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धमकियों से डर न जाए आइना.
सच से फिर मुकर न जाए आइना.

पत्थरों का इक हुजूम है उधर,
कह दो कि उधर न जाए आइना.

डर ये है कि झूट सच की जंग में,
टूट कर बिखर न जाए आइना.

सैकड़ों क़यामतें हैं राह में,
कह दो आज घर न जाए आइना.

पै बा पै हक़ीक़तों की ज़र्ब को,
सहते सहते मर न जाए आइना.

जब कहेगा सच कहेगा, इसलिए
नज़रों से उतर न जाए आइना.

चाँद शर्मसार होगा बे सबब,
आज बाम पर न जाए आइना.

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