Thursday, 24 April 2014

बहुत सँभाला फिर भी بہت سنبھالا پھر بھی





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बहुत सँभाला फिर भी आँसुओं में ढल के आ गए
तमाम दिल के ज़ख्म पैरहन बदल के आ गए

हमारे सर तो नेज़ों पर बलन्द भी नहीं हुए
ये कौन हैं जो अपने मुँह पे खून मल के आ गए

ख़ुशी की जुस्तुजू में मुझको खुद ही दौड़ना पड़ा
जो ग़म थे वो तो खुद ही मेरे पास चल के आ गए

बस इक चराग़ रात से नबर्द-आज़मा रहा
अँधेरे उसके सामने से हाथ मल के आ गए

मुहब्बतें सदायें देते देते सब को थक गईं
अदावतों की इक सदा पे सब निकल के आ गए

तमाम रास्ते तेरी गली से मुन्सलिक हैं क्या?
जहाँ भी हम गए तेरी गली में चल के आ गए

बग़ैर मौसमों के खूं की बारिशें बहुत हुईं
न जाने कैसे दिन ये "पूर्वांचल" के आ गए

वहाँ वो शोरे-हश्र था बपा, न चाहते हुये
सब अपनी क़ैदे-ज़ात से निकल निकल के आ गए

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